@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: कानून का राज
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रविवार, 14 दिसंबर 2008

कभी नहीं भूलेगा, स्कूल में हुई धुनाई का दिन

शास्त्री जी ने अध्यापकों से सजा-पिटाई के किस्से अध्यापक या जल्लाद ?  और अध्यापकों ने दिया धोखा ! उन के ब्लाग सारथी पर लिखे हैं। पढ़ कर मुझे स्कूल में हुई अपनी धुनाई का किस्सा याद आ गया। ये उन दिनों की बात है जब सब से अधिक मारपीट करने वाले अध्यापक को सब से श्रेष्ठ अध्यापक समझा जाता था। ऐसे अध्यापक के जिम्मे छोड़ कर माता पिता अपने हाथों से बच्चों को मारने पीटने की जिम्मेदारी का एक हिस्सा अध्यापकों को हस्तांतरित कर देते थे। यह दूसरी बात है कि कुछ जिम्मेदारी वे हमेशा अपने पास रखते थे।


हर साल मध्य मई से दिवाली तक हम दादा जी के साथ रहते थे और दिवाली से मध्य मई में गर्मी की छुट्टियाँ होने तक हम पिता जी के साथ रहते। पिता जी हर साप्ताहिक अवकाश में दादा जी और दादी को संभालने आते थे। फिर पिता जी को बी.एड़. करने का अवकाश मिला तो वे साल भर बाहर रहे। हमें पूरे साल दादा जी के साथ रहना पड़ा था। उसी साल छोटी बहिन ने जन्म लिया, तब मैं पांचवीं क्लास  में था। पिता जी बी.एड. कर के आए तो हमें जुलाई में ही अपने साथ सांगोद ले गए। वे कस्बे के सब से ऊंची शिक्षा के विद्यालय, सैकण्डरी स्कूल के सब से सख्त अध्यापक थे। हालांकि वे बच्चों की मारपीट के सख्त खिलाफ थे। लेकिन अनुशासन टूटने पर दंड देना भी जरूरी समझते थे। स्कूल का लगभग हर काम उन के जिम्मे था। स्कूल का पूरा स्टाफ उन्हें बैद्जी कहता था, वे आयुर्वेदाचार्य थे और मुफ्त चिकित्सा भी करते थे। बस वे नाम के हेड मास्टर नहीं थे। हेड मास्टर जी को इस से बड़ा आराम था। वे या तो दिन भर  में एक-आध क्लास लेने के लिए अपने ऑफिस से बाहर निकलते थे या फिर किसी फंक्शन में या कोई अफसर या गणमान्य व्यक्ति के स्कूल में आ जाने पर। सब अध्यापकों का मुझे भरपूर स्नेह मिलता।

उस दिन ड्राइंग की क्लास छूटी ही थी कि पता नहीं किस मामले पर एक सहपाठी से कुछ कहा सुनी हो गई थी। मुझे हल्की से हल्की गाली भी देनी नहीं आती थी। ऐसा लगता था जैसे मेरी जुबान जल जाएगी। एक बार पिता जी के सामने बोलते समय एक सहपाठी ने चूतिया शब्द का प्रयोग कर दिया था, तो मुझे ऐसा लगा था जैसे मेरे कानों में गर्म सीसा उड़ेल दिया गया हो। उस सहपाठी से मैं ने बोलना छोड़ दिया था, हमेशा के लिए। ड्राइंग क्लास के बाद जब उस सहपाठी से झगड़ा हुआ तो उस ने मुझे माँ की गाली दे दी। मेरे तो तनबदन में आग लग गई। मैं ने उस का हाथ पकड़ा और ऐंठता चला गया। इतना कि वह दोहरा हो कर चिल्लाने लगा। दूसरे सहपाठियों ने उसे छुड़ाया।


वह सहपाठी सीधा बाहर निकला। मैदान में हेडमास्टर जी और पिताजी खड़े आपस में कोई मशविरा कर रहे थे। वह सीधा उन के पास पहुंचा। मैं डरता न था तो पीछे पीछे मैं भी पहुँच गया मेरे पीछे क्लास के कुछ और छात्र भी थे। उस ने सीधे ही हेडमास्टर जी से शिकायत की कि उसे दिनेश ने मारा है। हेडमास्टर जी ने पूछा कौन है दिनेश? उस ने मेरी और इशारा किया ही था कि मुकदमे में दंड का निर्णय सुना दिया गया की मैं दस दंड बैठक लगाऊँ। यूँ दण्ड बैठक लगाने में मुझे कोई आपत्ति नहीं थी। उस से सेहत भी बनती थी। पर मुझे बुरा लगा कि मुझे सुना ही नहीं गया। मैं ने कहा मेरी बात तो सुनिए। यह स्पष्ट रूप से राजाज्ञा का उल्लंघन था। यह राज्य के मुख्य अनुशासन अधिकारी, यानी पिता जी से कैसे सहन होता। उन्हों ने धुनाई शुरू कर दी। उम्र का केवल आठवाँ बरस पूरा होने को था। रुलाई आ गई। रोते रोते ही कहा -पहले उसने मेरी माँ को गाली दी थी।

  माँ का नाम ज़ुबान पर आते ही धुनाई मशीन रुकी। तब तक मेरी तो सुजाई हो चुकी थी। पिताजी एक दम शिकायतकर्ता सहपाठी की और मुड़े और उस से कहा -क्य़ो? उस के प्राण एकदम सूख गए। वह डर के मारे पीछे हटा। शायद यह उस की स्वीकारोक्ति थी। वह तेजी पीछे हटता चला गया। पीछे बरांडे का खंबा था जिस में सिर की ऊँचाई पर पत्थर के कंगूरे निकले हुए थे। एक कंगूरे के कोने से उस का सिर टकराया और सिर में छेद हो गया। सिर से तेजी से खून निकलने लगा। पिताजी ने आव देखा न ताव, उसे दोनों हाथों में उठाया और अपनी भूगोल की प्रयोगशाला में घुस गए। कोई अंदर नहीं गया। वहाँ उन का प्राथमिक चिकित्सा केंद्र भी था। जब दोनों बाहर निकले। तब शिकायकर्ता के सिर पर अस्पताल वाली पट्टी बंधी थी और पिताजी ने उसे कुछ गोलियाँ खाने को दे दी थीं। अगली क्लास शुरू हो गई थी। मास्टर जी कह रहे थे। आज तो बैद्जी ने बच्चे को बहुत मारा। मेरे क्लास टीचर के अलावा पूरे स्टाफ को पहली बार पता लगा था कि जिस लड़के को वै्दयजी ने मारा वह उन की खुद की संतान था।

शिकायत कर्ता लड़के ने ही नहीं मेरी क्लास के किसी भी लड़के ने मेरे सामने किसी को गाली नहीं दी। वे मेरे सामने भी वैसे ही रहते, जैसे वे मेरे पिताजी के सामने रहते थे। शिकायत करने वाले लड़के से मेरी दोस्ती हो गई और तब तक रही जब तक हम लोग सांगोद कस्बे में रहे।

रविवार, 25 मई 2008

गुर्जर-2............यह आँदोलन है या दावानल ?

कोटा के आज के अखबारों में गुर्जर आंदोलन छाया हुआ है।

अखबारों ने जो शीर्षक लगाए हैं, उन्हें देखें.....................

सिकन्दरा में कहर - हालात बेकाबू, 23 और मरे, दो दिन में 39 लोग मारे गए, 100 से अधिक घायल - जवानों ने की एसपी व एसडीएम की पिटाई - हिंसक आंदोलन बर्दाश्त नहीं...वसुन्धरा - तीन कलेक्टर दो एसपी बदले - मौत का बयाना - कोटा में आज दूध की सप्लाई बंद, हाइवे पर जाम लगाएँगे - रेल यातायात ठप, बसें भी नहीं चलीं - टिकट विंडो भी रही बन्द - कोटा-दिल्ली-आगरा के बीच रेल सेवाएँ ठप,यात्रियों ने आरक्षण रद्द कराए, परेशानी उठानी पड़ी, रेल प्रशासन को करोड़ों का नुकसान, कई परीक्षाएँ स्थगित - लाखों के टिकट रद्द - श्रद्धांजली देने के खातिर गूजर नहीं बाँटेंगे दूध - ट्रेनें रद्द होने से कई परीक्षाएँ रद्द - एम.एड. परीक्षा टली - प्री बी.एड परीक्षा बाद में होगी - रेलवे ट्रेक की भी क्षति - श्रद्धांजलि देने की खातिर गुर्जर नहीं बाँटेंगे दूध - गुर्जर आंन्दोलन की आँच हाड़ौती में भी फैली - नैनवाँ पुलिस पर हमला - चार पुलिसकर्मी घायल- गर्जरों ने पहाड़ियों पर जमाया मोर्चा - राष्ट्रीय राजमार्ग 76 पर बाणगंगा नदी के पास जाम - कोटा शिवपुरी ग्वालियर सड़क संपर्क दो घंटे बन्द रहा - बून्दी बारां व झालावाड़ में जाम - स्टेट हाईवे 34 पर आवागमन बन्द - रावतभाटा रोड़ पर देर रात जाम - बून्दी जैतपुर में जाम पुलिसकर्मी पिटे - झालावाड़ बसें बन्द - 17 गुर्जर बन्दियों ने दी अनशन की धमकी - सेना सतर्क, बीएसएफ पहुँची, आरफीएसएफ की एक कम्पनी बयाना जाएगी - हर थाने को दो गाड़ियाँ - रात को दबिश - हाड़ौती के कई कस्बों में आज बन्द - राजस्थान विश्व विद्यालय की परीक्षाएं स्थगित - पटरी पर कुछ भी नहीं - ... प्रदेश में अशांति की अंतहीन लपटें - भरतपुर बयाना के हालात=पटरियाँ तोड़ी फिश प्लेटें उखाड़ी - दूसरे दिन बयाना में पहुँची सेना, शव लेकर रेल्वे ट्रेक पर बैठे रहे बैसला - डीजीपी ने हेलीकॉप्टर से लिया जायजा - चिट्ठी आने तक नहीं हटेंगे बैसला- गुर्जर आन्दोलन = गुस्सा+ जोश= पाँच किलोमीटर - यह तो धर्मयुद्ध है - जोर शोर से पहुँची महिलाएँ - चाहे चारों भाई हो जाएँ कुर्बान - मेवाड़ में सड़कों पर उतरे गुर्जर - राजसमन्द में हाईवे जाम - हजारों गुर्जरों का बयाना कूच - छिन गया सुख चैन- ठहरी साँसें - अटकी राहें - सहमी निगाहें - हैलो भाई तुम ठीक तो हो - कई रास्ते बंद जयपुर रोड़ पर खोदी सड़क - 8 कार्यपालक मजिस्ट्रेट नियुक्त - किशनगढ़ भीलवाड़ा बन्द सफल - दो गुर्जर नेता गिरफ्तार - करौली -टोक में सड़कें सुनसान - चित्तौड़गढ़ अजमेर अलवर और करौली आज बन्द - सहमे रहे लोग आशंकाओं में बीता दिन - शकावाटी में भी बिफरे गुर्जर - नीम का थाना में एक बस को आग के हवाले किया - चार बसों में तोड़ फोड़ - बस चालक घायल कई जगह रास्ता जाम- पाटन में सवारियों से भरी बस को आग लगाने का प्रयास - सीकर झुन्झुनु के गुढ़ागौड़ जी व खेतड़ी में गुर्जरों की सभाएँ और सीएम का पुतला फूँका ............

..........................................आपने पढ़े खबरों के हेडिंग ये एक दिन के एक ही अखबार से हैं। दूसरे अखबार से शामिल नहीं किये गए हैं। अब आप अंदाज लगाएँ कि यह आँदोलन है या दावानल ?

इस दावानल का स्रोत कहाँ है? वोटों के लिए और सिर्फ वोटों के लिए की जा रही भारतीय राजनीति में ?  पूरी जाति,  वह भी पशु चराने और उन के दूध से आजीविका चलाने वाली जाति से आप क्या अपेक्षा रख सकते हैं। यह पीछे रह गए हैं तो उस में दोष किस का है? इन के साथ के मीणा अनुसूचित जाति में शामिल हो कर बहुत आगे बढ़ गए हैं। गुर्जरों को यह बर्दाश्त नहीं। उन्हें राजनीतिक हल देना पड़ेगा। पर मीणा वोट अधिक हैं। उन्हें नाराज कैसे करें?

  

पिछड़ेपन को दूर करने की नाकाम दवा आरक्षण के जानलेवा साइड इफेक्टस हैं ये।

ये आग भड़क गई है। नहीं बुझेगी आरक्षण से। पीछे कतार में अनेक जातियाँ खड़ी हैं।

आरक्षण को समाप्ति की ओर ले जाना होगा। पिछड़ेपन को दूर करने और समानता स्थापित करने का नया रास्ता तलाशना पड़ेगा। मगर कौन तलाशे?

गुरुवार, 10 जनवरी 2008

किताबों में बन्द। कानून का राज?

और क्या हाल हैं? कोई भी मिलते ही पूछता है।

इस सवाल के अनेक जवाब हो सकते हैं। मगर सब के सब पिटे हुए, घिसे हुए। इन जवाबों में ही एक घिसा-पिटा जवाब यह भी है कि '' बस आप के राज में जी रहे हैं।

यह आप का, उन का, मेरा, काँग्रेस, बीजेपी, वाम-मोर्चा, माया, मुलायम, ममता, जया, लालू या और किसी का राज ही खतरे की घंटी है। हमारे देश में सामान्यतया इन में से ही किसी का राज चलता रहता है। संविधान इसे जनता के लिए, जनता के द्वारा जनता पर राज कहता है। मगर इस बात को कोई मानता नहीं। मानता इसलिए नहीं कि ऐसा कोई राज इस देश में कभी आया ही नहीं। तो फिर राज किसका है? जनता जानती है, और कहती भी है। पर बात ये नहीं है। बात यह है कि राज किस का? और कैसा होना चाहिए?

-वास्तव में होना चाहिए, कानून का राज।

-यह कैसा होता है? कैसे होगा?

-कानून का राज, मतलब उन कानूनों का राज, जो किताबों में दर्ज हैं। जिन्हें हमारी संसद और विधानसभाओं ने बनाया है और जिन्हें वह वक्त-जरुरत बनाती रहती है, और बनाती रहेगी। यानी देश के राष्ट्रपति, राज्यपाल, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, दूसरे मंत्री, सारे नौकरशाह, सारे सरकारी - गैर सरकारी कर्मचारी, सारे पूंजीपती, जमींदार, दुकानदार, व्यापारी, सारी सेना, पुलिस, सारे साहित्यकार, कलाकार, सारे किसान मजदूर जिस कानून को मानते हों और उसी के अनुसार चलते हों।

अब आप सोच रहे होंगे कि 'ऐसा भी कोई होता है क्या? कानून को न मानने वाले भी तो होते हैं। अगर सभी कानून को मानने वाले हों तो फिर राज की जरूरत ही क्या रह जाएगी। पुलिस, वकील और कचहरी की जरूरत भी नहीं होगी। सब लोग अपने आप चलते रहेंगे, समाज भी चलता रहेगा। नहीं, नहीं ऐसा तो हो ही नहीं सकता। और हो जाए तो ये पुलिस वाले, वकील, जज, ये अदालतों के बाबू-मुंशी टाइपिस्ट, ये सब कहाँ जाऐंगे? क्या करेंगे?

आप ने सही सोचा। वैसे कुछ लोग कहते हैं - राज नाम की चीज पहले नहीं हुआ करती थी। यह बाद में पैदा हुई। अब आचार्य बृहस्पति कह गए हैं कि जो पैदा होता है वह मरेगा। इसॉलिए मान लेते हैं कि राज भी कभी पैदा हुआ था तो मरेगा भी। यानी ऐसा भी वक्त आएगा जब राज नहीं रहेगा। इसलिए भी माने लेते हैं कि ये बात है मजेदार। वाकई, मजेदार। क्या बात है? सचमुच ऐसा भी वक्त आएगा जब राज ही नहीं रहेगा। वाकई मजेदार है।

लो आप मजा लेने में लग गए। मैं बात कर रहा था कानून के राज की और आप बे-राज का मजा लेने लगे। भाई मैं एक सीरियस बात करना चाहता हूँ। इसे मजाक में मत उड़ाओ।

-मजाक में न लें, तो करें क्या? संसद, विधानसभाएं कानून बनाती हैं, इसलिए कि देश मे, समाज में सब कुछ ठीक चले। पर लोग हैं कि कहाँ मानते हैं। कानून रख देते हैं ताक पर, अपने हिसाब से चलते रहते हैं।

-कानून को मनवाने का कानून भी तो साथ में बनाते हैं।

-बनाते हैं तो क्या? सिर्फ दिखाने के लिए। सजा तो तब हो जब पुलिस चालान करे। पुलिस चालान करती कहाँ है?

-करती क्यों नहीं? करती तो है?

-सिर्फ दिखाने के लिए। पब्लिक को बताने के लिए। पुलिस को चालान करने के लिए हेड कांस्टेबल या उस से ऊँचे अफसर चाहिए। वो हैं नहीं।

-कहाँ गए?

-थोड़े से हैं। उन्हें मंत्री जी की सुरक्षा, अफसरों की सुरक्षा में लगा दिया। बचे जो चुनाव कराने में लगे हैं। बाकी दंगे कराने, दंगे मिटाने और घर से भाग कर शादी करने वाली लड़कियों को ढूंढ़ने में लगे है।

-फिर कोई रपट दर्ज कराए तो उस पर तो कार्रवाई करते होंगे, .... मेरा मतलब करनी पड़ती होगी।

-करते हैं। समझाते हैं, रपट दर्ज करने वालों को। दुनियांदारी समझाते हैं। बताते हैं, क्या क्या करना होगा? फिर अदालत जाना होगा। वकील, मुन्शी, बाबू, रीड़र, जज सब से निपटना पड़ेगा। समझा कर समझौता कराते हैं।

-ऐसा? पर क्यों कराते हैं जी समझौता।

-बस अदालतें कम हैं जी, बहुत कम। पुलिस भी कम है।

-ऐसा? तो फिर क्या होगा जी?

-बस। ऐसे ही चलता रहेगा। काँग्रेस, बीजेपी, वाम-मोर्चा, माया, मुलायम, ममता, जया, लालू या और किसी का राज। संसद, विधानसभाऐं कानून बनाती रहेंगी। कानून रहेगा किताबों में कैद और राज चलता रहेगा।

और वो कानून का राज?

किताबों में बन्द।

ऐं............, किताबों में बन्द।