@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: अब तो अंगोछा मेरा है

शनिवार, 11 जून 2011

अब तो अंगोछा मेरा है

दालतों में अपने काम निपटा कर अपनी बैठक पर पहुँचा तो वहाँ एक जवान आदमी मेरे सहायक से बात कर रहा था। पैंट शर्ट पहनी हुई थी उस ने लेकिन गले में एक केसरिया रंग का गमछा डाल रखा था। वह सहायक से बात करने के बीच में कभी कभी उस से अपना पसीना पोंछ लेता था। केसरिया रंग के गमछे से पसीना पोंछना मुझे अजीब सा लगा। उधर बाहर सड़क पर पिछले चार दिनों से एक टेंट में बाबा रामदेव के अनुयायियों ने धरना लगा रखा है। वहाँ की दिनचर्या नियमित हो चली है। रात को तो इस टेंट में केवल तीन-चार लोग रह जाते हैं। उन का यहाँ रहना जरूरी भी है। वर्ना टेंट में जो कुछ मूल्यवान सामग्री मौजूद है उस की रक्षा कैसे हो? सुबह नौ बजे से लोगों की संख्या बढ़ने लगती है। दस बजे तक वे दस पन्द्रह हो जाते हैं। फिर टेंट में ही यज्ञ आरंभ हो जाता है। लाउडस्पीकर से मंत्रपाठ की आवाज गूंजने लगती है। इस आवाज से दर्शक आकर्षित होने लगते हैं। सड़क के एक ओर अदालतें हैं और दूसरी ओर कलेक्ट्री, दिन भर लोगों की आवाजाही बनी रहती है। टेंट में आठ-दस कूलर लगे हैं इस लिए गर्मी से बचने को न्यायार्थी भी वहाँ जा बैठते हैं।  इस से दिन भर वहाँ बीस से पचास तक दर्शक  बने रहते हैं।
कोई आधे घंटे में यज्ञ संपूर्ण हो जाता है। इसे उन्हों ने सद्बुद्धि यज्ञ का नाम दिया है। यह किस की सद्बुद्धि के लिए है, यजमान की या किसी और की, यह स्पष्ट नहीं है। हाँ आज अखबार में यह खबर अवश्य है -"बाबा रामदेव व आचार्य बालकृष्ण के स्वास्थ्य लाभ की कामना के साथ सद्बुद्धि यज्ञ" यहाँ अखबार की मंशा का भी पता नहीं लग रहा है। खैर जिसे भी जरूरत हो उसे सद्बुद्धि आ जाए तो ठीक ही है। यज्ञ संपूर्ण होते ही कुछ लोगों के ललाट पर तिलक लगा कर मालाएँ पहना कर मंच पर बैठा दिया जाता है। ये लोग क्रमिक अनशन पर बैठते हैं। शाम को पांच बजे उन का अनशन समाप्त हो जाता है। लोग बिछड़ने लगते हैं। छह बजे तक वही चार-पाँच लोग टेंट में रह जाते हैं। दिन में कोई न कोई भाषण करता रहता है। इस से बहुत लोगों की भाषण-कब्ज को सकून मिलता है। भाषण दे कर टेंट से बाहर आते ही उन का मुखमंडल खिल उठता है और वे पूरे दिन प्रसन्न रहते हैं और अगले दिन सुबह अखबार में अपना नाम और चित्र तलाशते दिखाई देते हैं।   

सुबह दस बजे की चाय पी कर हम लौट रहे थे तो टेंट पर निगाह पड़ी। रात को तेज हवा, आंधी के साथ आधे घंटे बरसात हुई थी। कल तक तना हुआ टेंट आज सब तरफ से झूल रहा था। लगता है यदि किसी ने उसे ठीक से हिला दिया तो गिर पड़ेगा। सुबह का यज्ञ संपन्न हो चुका था। शाम तक के लिए लोग अनशन पर बिठा दिए गए थे। किसी तेजस्वी वक्ता का भाषण चल रहा था। किसी ने टेंट को तानने की कोशिश नहीं की थी, टेंट सप्लायर की प्रतीक्षा में। तभी एकनिष्ठता से संघ और भाजपा के समर्थक हमारे चाय मित्र ने हवा में सवाल उछाल दिया -आखिर ये नाटक कब तक चलता रहेगा?  मैं ने मजाक में कहा था -शायद नागपुर से फरमान जारी होने तक। उस ने मेरे इस जवाब पर त्यौरियाँ नहीं चढ़ाई, बल्कि कहा कि बात तो सही है। वह शायद संघ के पुराने अनुयायियों के स्थान पर नए-नए लोगों को इस तरह के आयोजनों में तरजीह पाने से चिंतित था।

मैं ने सहायक से बात कर रहे उस के मुवक्किल से पूछा -ये केसरिया अंगोछा किस का है, बजरंग दल या शिवसेना का?  वह हँस पड़ा, बोला- अब तो ये मेरा है, और पसीना पोंछने के काम आता है। मैं ने फिर सवाल किया -कोई और रंग का नहीं मिला? उस का कहना था कि उस के पैसे लगते, यह तो ऐसे ही एक जलूस में शामिल होने के पहले पहचान के तौर पर गले में लटकाए रखने के लिए आयोजकों ने दिया था। जलसे के बाद वापस लिया नहीं। अब इस का उपयोग पसीना पोंछने के लिए होता है? उस के उत्तर पर मुझ से भी मुस्काए बिना नहीं रहा गया। मैं ने इतना ही कहा कि ये केसरिया अंगोछा भ्रम पैदा करता है, पता ही नहीं लगता कि कौन सी सेना है, बजरंगी या बालासाहबी। अब तो संकट और बढ़ने वाला है बाबा ने सेना बनाने की ठान ली है, वहाँ भी ये ही अंगोछे नजर आने वाले हैं।

21 टिप्‍पणियां:

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…

यही कार्य सीधा ही इसके लिए भी हो जाता तो कितना बेहतर...
यानि एक देशव्यापी यज्ञ किया जाता या किया जाए, भ्रष्टाचार के समूल नाश के लिए...
और भ्रष्टाचार देखते ही देखते ख़त्म...

Ruchika Sharma ने कहा…

सद्बुद्धि ना सही...अंगोछा ही सही :)

हंसी के फव्‍वारे

amit ने कहा…

आप भी पढ़ें बौराया मीडिया, बेईमान कांग्रेस, बेख़ौफ़ बाबा , बाबा जी का साथ दें http://www.bharatyogi.net/2011/06/blog-post_09.html

Shah Nawaz ने कहा…

Chaliye kuchh to mila... Kesariya Angochha hi sahi...

Khushdeep Sehgal ने कहा…

किसी को अंगोछा मिला, किसी को कुछ दिन के लिए रोज़गार...

धरने चलते रहें, प्रदर्शन पलते रहें...
चेहरे चेहरे पे रंगे-इंकलाब आ गया...

जय हिंद....

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

अच्छी बात यह है कि बाबा को भी फ़ायदा हो रहा है और उनके अनुयायियों को भी और ब्लागर्स को भी । कोई भाषण दे रहा है और कोई सुन रहा है और कोई पोस्ट लिख रहा है । बाबा के बल पर सभी मगन हैं ।
ख़ैर , रंग अच्छा है और काम दे रहा है । यही बहुत है । बाबा भी जल्दी ही सैट कर दिए जाएंगे । तब ये लोग जान लेंगे कि सद्बुद्धि तो यज्ञ से पहले ही आ चुकी थी ।
दरअसल किसी भी व्यापारी और सरकारी अधिकारी व कर्मचारी को कोई भी पंगा किसी भी सरकार से या समाज के स्वयंभू ठेकेदारों से नहीं लेना चाहिए अगर वह ख़ुद को सुरक्षित देखना चाहता है ।
हाँ , उस आदमी की बात अलग है जो अपने लिए बीमार होकर बिस्तर पर मरने के बजाय किसी का चाक़ू पेट में खाकर शहीद होने का ख़्वाहिशमंद हो । जो सरफ़रोश है और मारने से डरे और न मरने से , बस वही आज सच का जूता किसी को भी दिखा सकता है ।
विरोधी उसे दबा नहीं सकता अगर वह सरफ़रोश है । सरफ़रोश किसी नियमावली को नहीं मानता । उसकी अंतरात्मा बताती है उसे सच्चे नियम और वह लड़ता है सच के लिए। सरकारी जाँचें वह कितनी ही झेल चुका होता है और हरेक जाँच उसकी ईमानदारी देखकर ख़त्म भी कर दी जाती है । सरकारी महकमे भ्रष्ट होने के बावजूद अपने बीच के ईमानदारों का उन्मूलन नहीं करते क्योंकि वे भुगत चुके होते हैं कि जब भी इस बंदे के ख़िलाफ़ कोई क़दम उठाने की सोची तो उसके मालिक ने उनके ही क़दम उखाड़ दिए ।
यह सच है कि सत्य में हज़ार हाथियों का बल होता है ।
जिसे यक़ीन न आए वह टक्कर मार कर देख ले ।
बाबा अगर सरफ़रोश होते तो उनका जलवा भी आज कुछ और ही होता।

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

बढ़िया कमेन्ट...

Mansoor ali Hashmi ने कहा…

हवन- यज्ञ ये क्यूँ हुआ जा रहा है,
कहाँ देश मेरा, कहाँ जा रहा है?
'अंगोछो' में 'सेना' की शक्ति निहित है!
पसीना-पसीना हुआ जा रहा है.

http://aatm-manthan.com

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

@ शुक्रिया अरुण चंद्र रॉय जी !

निर्मला कपिला ने कहा…

जो गरजते हैं वो बरसते नही बाबा तो बरसादी बूँदों की तरह झर जायेंगे\ अब अन्दर ही अन्दर सरकार पर दवाब बनाया जा रहा है कि कोई सम्मानजनक फैसला कर लें तो बाबा जी सके\ ये भगवां अब्दर से कितना काला हो गया है। मै तो कहती हूँ भगवान बाबा को सद्बुद्धी दे और निश्चित है लोग भी यही चाहते हैं बी जे पी तो कम से कम नही चाहते फिर वो हाथ कहाँ सेकेगी? शुभकामनायें।

Arvind Mishra ने कहा…

बाबा रामदेव की मुहिम के प्रति लगातार आपके सिनिक दृष्टिकोण से अफसोस होता है ....यही दृष्टिकोण सामान मुद्दों पर आपका पहले भी रहा है ..एक विषय छूट रहा है आपसे ..हुसैन पर कसीदे काढने का ..वह भी लगे हाथ निपटा ही दीजिये ...
जारी रहिये ..
आखिर यह व्यक्ति की अभिव्यक्ति की आजादी का मामला है ....मैं भी प्रतिवाद यहाँ ठोक के जा रहा हूँ ...ताकि सनद रहे ...

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

@ Arvind Mishra
सिनिक होने का प्रमाण पत्र प्रदान करने के लिए आप का आभार।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सबका अंगोछा अपना है, लोग उसके रंग को राजनैतिक रंग दे देते हैं।

Sunil Kumar ने कहा…

आख़िर अंगोछा किसी भी रंग या पार्टी का हो प्रयोग में तो आ रहा है |

डा० अमर कुमार ने कहा…

.भागते बाबा का अँगोछा ही भला ...
मेरे मन में यह चल रहा कि यदि एक अँगोछा लगभग डेढ़ मीटर का हो.. और ऎसे 5000 अँगोछे लोगों में तक्सीम हुया हो.. तो कुल कपड़ा 7500 मीटर ! यह गणना मेरी बुद्धि से परे है, कि इतने कपड़े में कितने व्यक्तियों का वस्त्र आ जाता । कारोबारी दॄष्टि से देखा जाये तो यह विशुद्ध व्यापारिक निवेश है... आख़िर किस प्रत्याशा में ?

रचना ने कहा…

बी पी ऊपर नीचे करना और सांस रोकना तो हर योगी को आता हैं यही होती हैं "चाणक्य नीति "

प्रवीण ने कहा…

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... :)

सब कुछ अच्छा लगा और मुस्कुराहट बरनस ही आ गई... आपका यह आलेख, उस पर आदरणीय अरविन्द मिश्र जी का यों गुस्साना व आपको cynical कहना व इस प्रमाण पत्र पर आपका विनम्र आभार प्रदर्शन भी...




...

प्रवीण ने कहा…

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Correction...
बरनस=बरबस



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जीवन और जगत ने कहा…

भागते बाबा का अंगौछा भला या दुपट्टा। वीडियो फुटेज के अनुसार तो बाबा स्‍त्री पोशाक यानी शलवार कुर्ता पहनकर भागे थे। खैर, आज संत समाज ने बाबा का अनशन तोड़ दिया, वरना ख्‍वामख्‍वाह उनकी जान सांसत में रहती। सरकार मानने वाली तो थी नहीं। वैसे एक बात और भी गौर करने लायक है। योगाचारी बाबाजी की तबियत अनशन के चौथे-पांचवें दिन से ही इतनी खराब कैसे होने लगी, जबकि अन्‍ना जी उनसे उम्र में कहीं बड़े हैं और छह दिन तक अनशन के बाद भी उनकी सेहत अपेक्षाकृत अच्‍छी थी। यह मनोबल का अन्‍तर है या नीयत का।

डा० अमर कुमार ने कहा…

@ घनश्याम मौर्य
घनश्याम भाई साहब, जरा यह टिप्पणी देख लें । निश्चय ही यह सवाल उनकी नीयत का रहा है ।

sajjan singh ने कहा…

यज्ञ करने से इन्हें सदबुद्धि आती दो बार-बार यज्ञ कर आपना समय बरबाद नहीं करते । बाबा ने भी सेना बनाने की ठान ली है अब तो संपूर्ण वातावरण अंगोछामय होने को है ।

भाग्य चक्र से दूर