@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: लगी लगाई नौकरी के छूट जाने से किस्मत के दरवाजे भी खुल सकते हैं

सोमवार, 16 मई 2011

लगी लगाई नौकरी के छूट जाने से किस्मत के दरवाजे भी खुल सकते हैं

चानक बोदूराम की लगी लगाई नौकरी छूट गई। वह बड़े भाई की जगह नौकरी लगा था। हालाँकि तब उस का बड़ा भाई जीवित था पर अस्वस्थ हो गया था। अस्वस्थता के बावजूद वह नौकरी करता रहा। वह पूरी ईमानदारी के साथ अपना कर्तव्य करता। मालिकान उस की कर्तव्य परायणता से प्रभावित थे, इतने कि एक बार तो मालिकान में से कुछ उसे जनरल मैनेजर बनाने का प्रस्ताव कर बैठे थे। वह तो उसी ने मना कर उन्हें संकट से उबार लिया था। लेकिन फिर घर वाले बहुत नाराज भी हुए, कि आखिर जनरल मैनेजर बनने का प्रस्ताव उसने क्यों ठुकरा दिया? बाद में वह खुद भी मानने लगा कि उस ने ऐसा कर के ऐतिहासिक गलती की थी। फिर एक दिन ऐसा आया कि उस की अस्वस्थता बढ़ने लगी। उसे कर्तव्य पूरा करने में परेशानी होने लगी। आखिर उस ने इस्तीफा दे दिया। उस ने पूरे तेईस साल तक कर्तव्य निभाया था। मालिकान ने उस की सेवाओं का कर्ज चुकाने को उस के भाई बोदूराम को उस की जगह नौकरी दे दी।

बोदूराम अपने भाई से कम हुनरमंद नहीं था। कुछ अधिक ही था। उस ने भाई वाला काम संभाल लिया। उस से बेहतर करने लगा। सब लोग उस की तारीफ भी करते। लेकिन उस का ध्यान केवल काम की और ही लगा रहता। वह किसी की न सुनता। धीरे-धीरे कंपनी के दूसरे अधिकारी, कर्मचारी नाराज रहने लगे। उस की शिकायत करने लगे। कोई भी काम खराब होता झट से उस के मत्थे थोप दिया जाता। वह समझ ही नहीं पाता कि आखिर उस से ऐसा क्या हुआ है जिस से हर बुरी चीज उस के मत्थे थोप दी जाती है। वह अपने खिलाफ आरोपों का जोरदार खंडन करता। अपने किए कामों की सूची गिना देता। उस का ध्यान इस और गया ही नहीं कि कंपनी  में उस के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा है। उस ने उस तरफ ध्यान ही नहीं दिया। लोग उस से अधिक से अधिक नाराज होने लगे। शिकायतें बढ़ने लगीं। वह इसी दंभ में फूला रहा कि जब वह सब कुछ ईमानदारी से कर रहा है तो उसे आँच पहुँचाने वाला कौन है? 

खिर उस की शिकायतें इतनी हो गई कि पूरी कंपनी में खबर फैल गई कि इस बोर्ड मीटिंग के बाद उस का पत्ता साफ हो जाएगा। वह फिर भी कहता रहा कि उस का कुछ न बिगड़ेगा। लेकिन बोर्ड मीटिंग हुई,  ऐसा नहीं था कि उस के समर्थन में लोग नहीं थे। लेकिन समर्थन का स्वर कमजोर पड़ गया और उसे निकाल दिया गया। उस ने भी मान लिया कि उसे निकाल दिया गया है, वह घर आ बैठा। अभी उस के घर पर मिलने वालों का ताँता लगा हुआ है, लोग उस के पास ऐसे आ रहे हैं जैसे किसी के घर स्यापा करने जाते हों। जो आता है वही अफसोस जताता है। कहता है गलती तो तुमने कुछ भी न की थी, बस षड़यंत्र का शिकार हो गए। उस की समझ में यह नहीं आ रहा है कि वह लोगों को क्या कहे? 

ज सुबह उस के यहाँ एक आदमी आया और कहने लगा -तुम्हारी किस्मत सही थी जो तुम्हें नौकरी से निकाल दिया गया। एक तुम्हीं थे जो कंपनी को बरबाद होने से रोक रहे थे। कंपनी अब लाभ का सौदा नहीं रही है। मरी हुई लाश से पेट भरने वाले गिद्ध मंडराने लगे थे। तुम उन के मार्ग की रुकावट थे। तुम्हें निकाल दिया गया। अब मार्ग में कोई बाधा नहीं है। गिद्ध अपना पेट भर सकते हैं। तुम काबिल आदमी हो। यही एक काम नहीं है जिसे तुम कर सकते हो। तुम चाहो तो अपना काम खुद का काम कर सकते हो। अपनी खुद की कंपनी खड़ी कर सकते हो। पहले तुम्हारे भाई भी यही कहता था कि वह जरूर अपनी कंपनी खड़ी कर लेगा। लेकिन उस ने अपना जीवन कंपनी की सेवा में गुजार दिया। तुम्हें भी न निकाला जाता तो तुम भी यही करते। अब तुम्हें मौका मिला है तो आज से ही अपना काम शुरू कर दो।  ऐसे बहुत उदाहरण हैं जिन्हें नौकरी से निकाला गया और वे अपना खुद का काम आरंभ कर के बहुत बड़ी हस्ती बन गए। जो नौकरी में रह गए वे पूरी जिन्दगी मालिकों की सेवा करते रहे, सेवक ही बने रहे। तुम चाहो तो खुद मालिक बन सकते हो। लगी लगाई नौकरी के छूट जाने से किस्मत के दरवाजे खुलने का अवसर सामने होता है।
बोदूराम को मिलने आया आदमी चला गया। लेकिन बोदूराम को विचलित कर गया। बोदूराम सोच रहा है क्या करे? वापस कहीं नौकरी पाने का यत्न करे या खुद का काम आरंभ करे।

14 टिप्‍पणियां:

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक ने कहा…

गुरुवर जी, उपरोक्त कहानी में बोदूराम के हुनर को देखते हुए.अब बोदूराम को खुद का काम आरंभ करना चाहिए.शुरू में थोड़ी-सी परेशानियों का सामना करना होगा.लेकिन सफलता उससे बहुत दूर ज्यादा दिन नहीं रह सकती है. वैसे जहाँ कुछ लोग कम्पनी में सिर्फ काम (दिखावा करने को) करते हैं या कम्पनी का अहित करके सिर्फ अपना स्वार्थ सिध्द करते हैं. वहां पर मेहनती व्यक्तियों के साथ बोदूराम जैसा होता है.ऐसे मेरे अनेकों अनुभव है.

Udan Tashtari ने कहा…

मौका मिला है और काबिलियत भी है ही, तो एक कोशिश तो करना ही चाहिये खुद का जमाने की मगर बोदूराम को काम के साथ साथ दुनियादारी की समझ भी बढ़ानी होगी.

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

बोदूराम को डेनियल गोलमैन की इमोशनल इण्टेलिजेंस पर पुस्तकें पढ़नी चाहियें।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

एक प्रयास तो बनता है।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

सोच लो बोदूराम... किसी की नौकरी यानि ८ घंटे की गुलामी, खुद का धंधा यानि २४ घंटे की गुलामी :)

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

यूनानी मेडिसिन की लाइन में रैक्स कंपनी का नाम हमदर्द के बाद ही लिया जाता है। जब शमा कंपनी बंद हुई तो उसके मुलाज़िम बेरोज़गार हो गए। ऐसे ही 5 बेरोज़गारों ने मिलकर रैक्स बनाई, काम जमाया और इस समय करोड़ों रूपये सालाना का टर्न ओवर है सिर्फ़ 15 साल में ही।
आपकी कहानी और नसीहत सही है।

http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/05/andha-qanoon.html

राज भाटिय़ा ने कहा…

बोदूराम कर लो अपना काम शुरु... अरे मै भी सोच रहा हुं अपना काम शुरु करने के लिये, मेरी कम्पनी भी घाटे मे चल रही हे, बस हिम्मत मत हराता, तुम कामयाब जरुर होंगे,लेकिन एक बात अपने चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी की बात पर भी ध्यान देना...लेकिन घबराना नही..

Smart Indian ने कहा…

रोचक कहानी है। ऐक्सटैम्पोर लगती है।

@आखिर उस की शिकायतें इतनी हो गई कि पूरी कंपनी में खबर फैल गई कि इस बोर्ड मीटिंग के बाद उस का पत्ता साफ हो जाएगा। वह फिर भी कहता रहा कि उस का कुछ न बिगड़ेगा।

जो व्यक्ति अपने परिवेश से पूर्णतया कटकर अपने ही आभामंडल में विचरेगा उसकी नौकरी तो छ्टनी ही थी, अपने को अपने परिवेश से विशेष समझना बन्द करेगा, तो किस्मत की चाभी उसके हाथ है। लेकिन क्या उसे किस्मत में विश्वास है?

@तुम चाहो तो अपना काम खुद का काम कर सकते हो। अपनी खुद की कंपनी खड़ी कर सकते हो।

भाग्यशाली है बोदूराम जो भारत जैसे स्वतंत्र लोकतंत्र में रहता है और उसे अपनी मर्ज़ी का रोज़गार चुनने का अधिकार है। कितने सारे बदनसीब बोदूलाल भी हैं जिनता मुस्तकबिल "ईमानदार" सरकारें/पार्टियाँ/पंचायतें आदि तय करती हैं।

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

आभारी हूँ आप की इस टिप्पणी का कि ...
'जो व्यक्ति अपने परिवेश से पूर्णतया कटकर अपने ही आभामंडल में विचरेगा उसकी नौकरी तो छ्टनी ही थी'
मेरा उद्देश्य सफल हो गया।

anilray ने कहा…

single man kitni hihight par chala jaye vo safal nahi hai saflta tab hi hoti hai jab vo maximum worker ko apne kam main sath le or sfal hi . budh ram ne bi self company banai or anya logo ko sath liya or safal huaa.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

सबसे कटने पर उखड़ जाने... उखड़ जाने पर फिर से जमने या फेका जाने, दोनो की संभावना रहती है। कुछ किस्मत, कुछ अपने श्रम,साहस पर निर्भर करता है। जो व्यक्ति इस कंपनी में चल रहे षड़यंत्र को नहीं समझ सका वह अपनी कंपनी क्या चलायेगा ऐसा सोचा जा सकता है लेकिन यह भी हो सकता है कि इस घटना ने उसकी इस कमी को दूर कर दिया हो।
..संभावना तलाशती, खुद से बतियाने को विवश करती कहानी।

सञ्जय झा ने कहा…

hum jaise sevakon ko.......atma-chintan karne ke liye prerit karti
post........

pranam.

बेनामी ने कहा…

अपनी मर्ज़ी का रोज़गार चुनने का अधिकार है...
बेरोजगारों और मजबूर-रोजगारों के लिए...
बेहूदा मज़ाक, अत्याचार है...

जिनकी बल्ले-बल्ले है...
उनका ये व्यभिचार है...

डा० अमर कुमार ने कहा…

..बोदूराम ने खुद को अलग रखे जाने का मौका दिया, और उन्होंने उसे भुगत लिया । स्वयँ का रोजगार शुऋ करने में यह सँदेह है कि, वह अपने कर्मचारियों को खुश रख पायेंगे !