@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: किस ने दिया कीचड़ उछालने का अवसर?

सोमवार, 16 नवंबर 2009

किस ने दिया कीचड़ उछालने का अवसर?


चिन तेंदुलकर के ताजा बयान से  निश्चित रूप से शिवसेना  और मनसे  की परेशानी बढ़नी  थी। दोनों ही दलों की  राजनीति जनता  को किसी भी रूप में बाँटने  उन में एक  दूसरे  के प्रति  गुस्सा पैदा कर अपने हित साधने  की  रही है। दोनों दल इस  से कभी बाहर नहीं निकल सके, और न ही कभी निकल पाएँगे। बाल ठाकरे का  सामना में लिखा  गए  आलेख  से सचिन का तो क्या बनना बिगड़ना है? पर उन का यह आकलन तो सही सिद्ध  हो ही गया कि  पिटी हुई शिवसेना को  और ठाकरे को  इस  से मीडिया बाजार में कुछ भाव मिल जाएगा। मीडिया ने  उन्हें यह भाव दे  ही  दिया।  इस बहाने मीडिया काँग्रेस और कुछ अन्य  दलों के जिन जिन नेताओं  को भाव देना चाहती थी उन्हें भी उस का अवसर मिल गया। लेकिन जिन कारणों से तुच्छ  राजनीति करने वाले लोगों को  अपनी राजनीति  करने का अवसर मिलता है, उन पर मीडिया चुप ही रहा।
  
भारत  देश, जिस के पास अपार प्राकृतिक संपदा है, दुनिया के  श्रेष्ठतम  तकनीकी लोग हैं, जन-बल  है, वह अपने इन साधनों के सुनियोजन से दुनिया की किसी भी शक्ति को चुनौती दे सकता  है।  वह पूँजी के लिए दुनिया की तरफ कातर निगाहों से देखता है। क्या देश के अपने साधन दुनिया  की पूँजी का मुकाबला नहीं कर सकते? बिलकुल कर सकते हैं। आजादी के 62 वर्षों के बाद  भी हम अपने लोगों के लिए पर्याप्त  रोजगार उपलब्ध  नहीं करा सके। वस्तुतः हमने इस ओर ईमानदार प्रयास ही नहीं किए। अब पिछले 20-25 वर्षों  से तो हम ने इस काम को पूरी तरह से निजि पूँजी और बहुराष्ट्रीय निगमों के हवाले कर दिया  है। यदि हमारे कथित राष्ट्रीय दलों ने जो केंद्र की सत्ता  में भागीदारी कर चुके हैं और आंज भी भागीदार  हैं, बेरोजगारी की समस्या को हल करने में अपनी पर्याप्त रुचि दिखाई होती तो देश को बाँटने वाली इस तुच्छ राजनीति का  कभी का पटाक्षेप  हो गया होता। यह देश में  बढ़ती बेरोजगारी  ही है जो देश की जनता को जाति, क्षेत्र, प्रांत,  धर्म  आदि के आधार पर बाँटने का अवसर  प्रदान  करती है।

चिन जैसे व्यक्तित्वों पर कीचड़ उलीचने की जो हिम्मत  ये तुच्छ राजनीतिज्ञ कर पाते हैं उस के लिए काँग्रेस और भाजपा जैसे हमारे कथित  राष्ट्रीय दल अधिक जिम्मेदार  हैं।

12 टिप्‍पणियां:

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

दूबे जी !
राजनीति तो सत्ता और शक्ति के लिए पागल हुयी
रहती है | मनसे की अपनी राजनीति तो है ही साथ
ही साथ केंद्र की ख़ामोशी में भी उसी राजनीति की
बू आती है ...आपने एकदम सही कहा है---'' सचिन
जैसे व्यक्तित्वों पर कीचड़ उलीचने की जो हिम्मत
ये तुच्छ राजनीतिज्ञ कर पाते हैं उस के लिए काँग्रेस
और भाजपा जैसे हमारे कथित राष्ट्रीय दल अधिक
जिम्मेदार हैं। '' अब आगे बाबा तुलसी दास की पंक्ति याद
आती है ---''राजनीति नहिं धरम विचारी '' |
आभार ... ...

बेनामी ने कहा…

ye to apne pair pe kulhadi marne k saman karya kar gaye bal thakre
sachin ki fan following bharat me sabse badi hai aur yahan tak ki usme marathi log bhi bahut hai aur vo sab sachin se to nahi lekin bal thakre se itne khafa hain ki use desh se nikalne ki maang tak kar rahe hain. aap orkut ki do badi communities me ye tathya dekh sakte hain "sachin tendulkar" 5 lakh se adhik member aur "India" karib 9 lakh member

राज भाटिय़ा ने कहा…

अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी जी की बात से सहमत हुं

Udan Tashtari ने कहा…

जो भी है बड़ा अफसोसजनक और घटिया राजनिति का चित्र है.

M VERMA ने कहा…

सचिन जैसे व्यक्तित्वों पर कीचड़ उलीचने की जो हिम्मत ये तुच्छ राजनीतिज्ञ कर पाते हैं
वाकई ये तुच्छ ही तो हैं

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

लानत है ऐसे राजनीतिज्ञों पर। आपने बिल्कुल खरी बात उठायी।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

सबसे पहले तो वह पत्रकार जिम्मेदार है जिसने इस प्रकार का प्रश्न किया :)

Batangad ने कहा…

सब कांग्रेस के चाहे जैसा ही हो रहा है। और, दुखद ये कि दूसरे दल कुछ करने की हालत में नहीं हैं।

संजय बेंगाणी ने कहा…

ठाकरे का कद ही घटा है.

सचिन ने क्या गलत कहा था? हर नागरीक पहले भारतीय है. देश का हर शहर हर भारतीय का है.

बेनामी ने कहा…

‘..सचिन जैसे व्यक्तित्वों पर कीचड़ उलीचने की जो हिम्मत, ये तुच्छ राजनीतिज्ञ कर पाते हैं..’

सचिन की कही बात ज़्यादा महत्वपूर्ण है, और उस पर कीचड़ उछालना...

विचार को खत्म करने की जुंबिश...

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

बाल़ा साहेब ठाकरे = मनसा संघ की दादागिरी
अब गुंडा गिरी बन कर
सभी से अनादर इकट्ठा कर रही है
आपका अंदाज़ बिलकुल सही --
स्नेह ,
- लावण्या

Ek ziddi dhun ने कहा…

मीडिया को देश की जेनुइन दिक्कतों से क्या मतलब? वह तो वही करती है जो ताकत वाले किया करते हैं. सचिन को कई दिनों तक इस तरह छापते रहे जैसे बस यही है देश का मतलब. फिर ठाकरे को छाप दिया मुद्दों से ध्यान हटाये रखने के लिए.