@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: ज़िन्दगी यूँ ही गुज़र जाए ज़रूरी है क्या : पुरुषोत्तम 'यक़ीन' की ग़ज़ल

रविवार, 14 जून 2009

ज़िन्दगी यूँ ही गुज़र जाए ज़रूरी है क्या : पुरुषोत्तम 'यक़ीन' की ग़ज़ल

रविवार के अवकाश में आनंद लीजिए पुरुषोत्तम 'यक़ीन' की  एक ग़ज़ल का 
 

ज़िन्दगी यूँ ही गुज़र जाए ज़रूरी है क्या
  • पुरुषोत्तम 'यक़ीन'
बात होठों पे चली आए ज़रूरी है क्या
दिल में तूफान ठहर जाए ज़रूरी है क्या

कितने अंदाज़ से जज़्बात बयाँ होते हैं
वो इशारों मे समझ जाए ज़रूरी है क्या

क्या वो करते हैं? कहाँ जाते? कहाँ से आते
तुम से हर बात कही जाए ज़रूरी है क्या

नाव टूटी है तो क्या खेना नहीं छोड़ूंगा
नाव लहरों में ही खो जाए ज़रूरी है क्या

मुश्किलें देख के तू परेशाँ क्यूँ है
ज़िन्दगी यूँ ही गुज़र जाए ज़रूरी है क्या

कह दिया उस को जो कहना था समझ जाओ 'य़कीन'
बार-बार आप को समझाएँ ज़रूरी है क्या


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14 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार झा ने कहा…

इक बार पढ़ लिया..
मन भर ही जाए..जरूरी है क्या..
सो दोबारा फिर पढेंगे..

खूबसूरत गजलें हैं...

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

यकीन जी बहुत सही लिखा जी. समझदार को एक इशारा ही काफ़ी है.

रामराम.

IRFAN ने कहा…

aaj ki subah ko aapne lajawab bana diya...Yaqin kijiye is ghazal ke kai sher insaan ka hausla badhate hain.Apka Shukriya aur Yaqin shaab ko mubarakbaad!Ye silsila ANVARAT qayam rahe...Ameen!

IRFAN ने कहा…

aaj ki subah ko aapne lajawab bana diya...Yaqin kijiye is ghazal ke kai sher insaan ka hausla badhate hain.Apka Shukriya aur Yaqin shaab ko mubarakbaad!Ye silsila ANVARAT qayam rahe...Ameen!

Unknown ने कहा…

'यकीन' की शायरी मुझे हमेशा से ही प्रभावित करती रही है, सादा बयानी और गहराई उनकी शायरी की खासियत है और मैं उनकी शायरी को हज़ार सलाम करता हूँ.

Ashok Pandey ने कहा…

बहुत खूबसूरत गजल है। अच्‍छी लगी।

गौतम राजऋषि ने कहा…

बेमिसाल अंदाज यक़ीन साब का
"क्या वो करते हैं? कहाँ जाते? कहाँ से आते
तुम से हर बात कही जाए ज़रूरी है क्या"

वाह !!!

राज भाटिय़ा ने कहा…

मुश्किलें देख के तू परेशाँ क्यूँ है
ज़िन्दगी यूँ ही गुज़र जाए ज़रूरी है क्या

बहुत सुंदर भाव लिये है ,
धन्यवाद

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

अरे वाह ,ये ग़ज़ल तो अच्छी है .

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

यकीन साहब की उम्दा गज़ल पढकर यकीनन खुशी हुई !
- लावण्या

वीनस केसरी ने कहा…

बहुत उम्दा किस्म के शेरों के लिये आपकी बधाई...

कितने अंदाज़ से जज़्बात बयाँ होते हैं
वो इशारों मे समझ जाए ज़रूरी है क्या

मुश्किलें देख के तू परेशाँ क्यूँ है
ज़िन्दगी यूँ ही गुज़र जाए ज़रूरी है क्या

ये शेर ख़ास पसंद आया
वीनस केसरी

Abhishek Ojha ने कहा…

'यकीन' मानिए पिछली पोस्ट पर यकीनजी का परिचय और ये गजल दोनों खूब पसंद आये !

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बहुत अच्छी रचना है...इसे ग़ज़ल ना कहें.
नीरज

चंदन कुमार मिश्र ने कहा…

पढ़ लिया। कुछ कहना भी जरूरी है क्या?