@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: बदलता मौसम, किसान और मेरी उदासी

शुक्रवार, 20 मार्च 2009

बदलता मौसम, किसान और मेरी उदासी

 शीतकाल
सारी सर्दी हलके गर्म पानी का इस्तेमाल किया स्नान के लिए।  होली पर रंगे पुते दोपहर बाद 3 बजे बाथरूम में घुसे तो सोचा पानी गर्म लें या नल का।  बेटी बोली नल का ठीक है। हम ने स्नान कर लिया। कोई परेशानी न हुई।  लेकिन दूसरे दिन ही नहाने के लिए पानी गरम लेने लगे।  बस दो दिनों से नल के पानी से नहाने लगे हैं। परसों तक रात को वही दस साल पुरानी एक किलो रुई की रजाई औढ़ते रहे जिस की रुई कंबल की तरह चिपक  चुकी है।  कोई गर्मी नहीं लगी।  परसों तक उसे ही ओढ़ते रहे।   लेकिन कल अचानक गर्मी हो गई।  रात को अचानक पार्क के पेड़ों के पत्ते खड़खड़ाने लगे तो पता चला कि आंधी चल रही है। कोई 15 मिनट तक पत्तों की आवाजें आती रहीं।  चादर ओढ़ा पर वह भी नहीं सुहाया तो बिना ओढ़े ही सोते रहे, सुबह जा कर वह किसी तरह काम आया। 
होली
मौसम बदल रहा है।  दिन में अदालत में थे कि तीन बजे करीब बादल निकलने लगे। साढ़े चार अदालत से चले कि रास्ते में बून्दें टपकाने लगे पर रास्ते में ही बूंदें बन्द हो गईं।  शाम को साढ़े छह- सात के करीब हम ब्लाग पर पोस्ट पढ़ रहे थे कि अचानक बिजली चली गई।  कम्प्यूटर, रोशनी, पंखा सब बंद बाहर से टप टपा टप की आवाजें आने लगीं फिर पानी की रफ्तार तेज हो गई कोई बीस मिनट पानी बरसता रहा जोरों से।  फिर पानी बंद हुआ।  कोई पाँच मिनट बाद बिजली आ गई।  अभी हवा चल रही है।  पार्क के पेड़ डोल रहे हैं।  पत्ते थरथरा कर एक दूसरे से टकराकर ध्वनियाँ कर रहे हैं, यहां मेरे दफ्तर तक सुनाई दे रही हैं।
 बरसात

हर साल पूरे साल का गेहूँ घर आ जाता है एक ही किसान के यहाँ से।  पिछले साल किसी गलतफहमी के कारण नहीं आ सका था।  हमने किसी और से लिया नहीं।  लेकिन पिछले साल का गेहूँ बचा था, कुछ हमने इस साल मोटा अनाज ज्वार, मक्का, बाजरा का कुछ अधिक इस्तेमाल किया तो गेहूँ पिछले माह तक हो गया। बाजार टटोला तो पता लगा नया गेहूँ आने वाला है।  हम ने चक्की वाले से सीधे आटा लिया दस-पन्द्रह दिन चल जाएगा।

कल अचानक बेटे को इंदौर निकलना पड़ा, मैं और धर्मपत्नी श्रीमती शोभा जी उसे छोड़ कर स्टेशन से बाहर निकले तो गेहूँ वाले किसान विष्णु बाबू मिल गए।  वे किसी को स्टेशन लेने पहुँचे थे उन की ट्रेन आने वाली थी।  कुछ देर बातें करते रहे।  फिर कहने लगे गेहूँ कटने की तैयारी है।  दस दिन में आ जाएगा।  कब तक पहुँचा दूँ? मैं ने कहा हमारे यहाँ तो पिछले साल गेहूँ खरीदा ही नहीं गया, पुराना ही चलता रहा।  वह एक सप्ताह पहले ही खत्म हुआ है।  तो कहने लगे पड़ौसी के तैयार हो गए हैं कल ही एक बोरी तो भिजवा देता हूँ।   फिर दो हफ्ते में साल का रख जाउँगा।  हमें सुखद अनुभव हुआ।
ग्रीष्म
लेकिन यह कुसमय रात की आंधी और अब शाम की बरसात। शायद किसानों के लिए तो शंका और विपत्ति ले कर आई है।  इस साल सर्दियों की अवधि छोटी रहने से पहले ही फसल तीन चौथाई दानों की हो रही है।  तिस पर यह बरसात न जाने क्या कहर बरसाएगी।  ओले न हों तो ठीक नहीं तो आधा भी गेहूँ घर न आ पाएगा।  मैं सोच ही रहा हूँ कि विष्णु जी कितने चिंतित और उदास होंगे?   फसल को जल्दी कटवाने की जुगत में होंगे? वादे का एक बोरी गेहूँ भी आज नहीं पहुँचा है।  वे जरूर परेशान होंगे।  मैं भी सोचते हुए उदास हो गया हूँ।

15 टिप्‍पणियां:

Manvinder ने कहा…

mousam का आपने बहुत सुंदर चित्रण किया है .....वैसे उदासी भी jayaj है

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

आज का मौसम सभी जगह का ऐसा ही हो गया है. और गेंहू की फ़सल को नुक्सान ही पहुंचायेगा.

शुक्र है कि ओले ना गिरे.

रामराम.

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

बहुत समेटे है माटी की गन्ध अपने में यह पोस्ट! बहुत सुन्दर!

Arvind Mishra ने कहा…

हां कसानो का दिल धड़क रहा है -यहाँ भी कल गर्मी अचानक बढ़ गयी है !

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

फ़सल की प्यास के मौके पे हो गया रूपोश,
फ़सल पकी तो अचानक बरस गया पानी।

राज भाटिय़ा ने कहा…

चलिये भगवान से प्राथना करते है की किसान भाईयो की मदद जरुर करे, उन की मेहनत है यह सारी, बहुत ही सुंदर लिखा आप ने, वेसे हम भी पुरे साल का गेंहू एक ही जान पहाचान ्वाले किसान से लेते थे, अब मालुम नही

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

मौसम कह रहा है

मौ सम कौन ?

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

आपके हर आलेख , सदा बहुत अच्छे और पढने लायक होते हैँ ये भी बहुत अच्छा लगा -
और चित्र देखकर लगा, भारत की विविधता की बात निराली है
-किसान भाईयोँ की मेहनत उन्हेँ सुफलाम दे -
स स्नेह,
- लावण्या

अनिल कान्त ने कहा…

मौसम को आपने अपने अंदाज में बयां किया है

bhuvnesh sharma ने कहा…

यहां तो किसान इसी डर में थे...पर हल्‍की बूंदाबांदी हुई और सब फसल बच गई

मोहन वशिष्‍ठ ने कहा…

बहुत खूब एक बरस के मौसम चार

बाकी भगवान के हाथ है हम प्रार्थना करते हैं कि किसी की मेहनत पर पानी न फिरे
और ओले तो बिल्‍कुल न गिरें

संगीता पुरी ने कहा…

यह विडम्‍बना ही है कि सबों को चारा मुहैय्या करानेवाले बेचारे किसानो को तो हर साल मौसम की इस तरह की मार झेलने के लिए तैयार रहना पडता है ... इसलिए तो कृषिकार्य में लगना सर्वाधिक अनिश्चितता वाला कार्य है ... जो मौसम हमलोगों को खुशी देता है वही उनके लिए परेशानी का कारण।

Abhishek Ojha ने कहा…

पिछले शुक्रवार को पुणे में भी भारी बारिश हुई और ओले भी खूब पड़े.

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

बहुत भावपूर्ण लिखा है आपने .हम लोंगों को भी इधर बदलते मौसम को देख चिंता हो रही है .

बेनामी ने कहा…

बदलते मौसम का चित्रण, आपने बखूबी किया है.
ऐसे बदले मौसम में किसानों की धड़कन बढ़ना लाजिमी है.

चंद मानवों के खेल में, शेयर बाज़ार में हुया कथित नुकसान सबको दिखता है, जिसकी भरपाई भी आगे पीछे होने की उम्मीद है.
लेकिन उन किसानों की सुध कौन लेता है, जिनकी हाड तोड़ मेहनत पर कुदरत पानी फेर देती है.