@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: एक चैट, भारत-पाकिस्तान पर

शुक्रवार, 16 जनवरी 2009

एक चैट, भारत-पाकिस्तान पर

मकर संक्रान्ति के दिन अवकाश था,  मैं अंतर्जाल पर जीवित पकड़ा गया, एक  ब्लागर साथी के हाथों।  उन से चैट हुई।  चैट इतनी अच्छी हुई कि बिना उन से पूछे सार्वजनिक करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ।  चलिए बिना भूमिका के आप पढ़िए....

मैं: नमस्ते  

?????? जी! संक्रान्ति की राम राम!

??????: मकर संक्रान्ति की बहुत बहुत बधाई हो आप को भी। सर! क्या हम वर्तमान स्थिति पर कोई बात कर सकते हैं? भारत और पाकिस्तानम के बारे में? यदि आप के पास समय हो?

मैं: आप अपनी बात कहें।

??????:मैं सोचता हूँ कि ये भारत की कायरता है जो उस ने अब तक कोई कदम नहीं उठाया है। ऐसा ही जब संसद पर हमला हुआ था तब भी हुआ था।  हमने जितने सबूत थे पाकिस्तान को दिए उस ने सब नकार दिए। यहाँ तक कि आतंकवादियों को सबूतों और गवाहों की कमी को दिखाते हुए रिहा तक कर दिया ( हो सकता है ये मेरी सीमित सोच हो) इस लिए आप इस बात पर रोशनी डालिए।

मैं:  आप का कहना कुछ हद तक सही है। लेकिन आज हम कोई दुनिया में अकेले नहीं हैं। पूरा विश्व समुदाय है। हम अपनी जमीन पर कोई भी कार्यवाही कर सकते हैं। लेकिन पाकिस्तान की जमीन पर कोई भी कार्यवाही करने के पहले पूरे विश्व समुदाय में उस के लिए माहौल बनाना आवश्यक है। उस काम को हमारी सरकार बखूबी कर रही है। जल्दबाजी और क्रोध में उठाया गया कदम उल्टा भी पड़ जाता है। हाँ यदि माहौल बनने के उपरांत भी ऐसा न किया जाए तो फिर कायरता है। हमारे देश में तो माहोल है। लेकिन वैश्विक समुदाय में माहौल बनाने में कुछ समय और लग सकता है।  अभी तो हमें सरकार का साथ देते हुए उसे आगे कार्यवाही करने के लिए लगातार तत्पर रखना है।

??????:जब अमेरिका किसी की परवाह नहीं करता तो हम क्यों करें?

मैं:  सबूत केवल पाकिस्तान को ही नहीं दिये हैं अपितु इसीलिए वैश्विक समुदाय में दिए गए हैं ताकि कोई बाद में पंगा न करे।  हम भारत की तुलना अमेरिका से नहीं कर सकते, और परवाह तो उसे भी करनी पड़ती है।

??????:अब पाकिस्तान ने अफगानिस्तान से लगते इलाकों से सेना हटा कर हमारी सीमा के पास लगा दी।

मैं:  वह अमरीका की चिंता का विषय है।  इस से उस को परेशानी होगी।

??????: वहाँ वजीरीस्तान के कबीलों के सरदारों ने भी पाकिस्तान का साथ देने की हामी भर दी है।

मैं: वह हमारे हित में ठीक है। आप को अमेरिका का अधिक साथ मिलेगा।

??????: कल तक तो अमेरीका का रिप्रेजेण्टेटिव था।

मैं: वे पाकिस्तान का साथ नहीं दे रहे वे वस्तुतः पाकिस्तान को तोड़ना या वहाँ अपनी हुकूमत देखना चाहते हैं।

??????: और आज खिलाफ हो रहा है हाँ जो अमेरीका का मंसूबा है हम वो क्यों नहीं कर सकते?

मैं:पाकिस्तान अपने अंतर्विरोधों से टूटेगा। किसी बाहरी हमले से नहीं।

??????: इंदिरा ने तो जीता जिताया लाहौर तक वापिस दे दिया। कहने का मतलब है कि हम सांस भी लेंगे तो अमेरिका से पूछ कर?

मैं: झगड़े के वक्त पड़ौसी के घर में घुस कर मार करेंगे तो बाद में वापस अपने घर आना तो पड़ेगा न।

??????: आतंकवादियों ने हमारे घर पर आक्रमण किया है, ना कि अमरीका पर?

मैं: आज जमीने युद्ध से नहीं वहाँ के रहने वालों की इच्छा के आधार पर किसी देश में बनी रह सकती हैं।
आप ने सही कहा है। आतंकवाद से निपटना तो हमें ही पड़ेगा। लेकिन दूसरे के घर जा कर मार करने के लिए बहुत तैयारी जरूरी है।
फिर हम मोहल्ले के बदमाश को पीटने के पहले उस के खिलाफ माहोल तो बनना पड़ेगा। वरना खुद ही धुन दिए जाएंगे। और मुकदमा भी आप के खिलाफ ही बनेगा।

??????: ये तो एक्सक्यूज है। अमरीका ने सद्दाम को मारने से पहले, उस के देश को तबाह करने से पहले किसी से पूछा था? लादेन के देश (अफगानिस्तान) में घुस कर उस के देश को तबाह कर दिया?
मैं: वहाँ परिस्थिति भिन्न थी सद्दाम खुद दूसरे देश में सेना ले कर घुसा था और उस देश ने अमरीका की मदद मांगी थी।  आज पाकिस्तान जरा घुसने की हिमाकत कर डाले तो काम बहुत आसान हो जाए।  उस के लिए देश और सेना तैयार खड़ी है,   लेकिन वह ऐसा नहीं करेगा।
??????: आशा करें कि वह ऐसा करे।  ओ.के. सर! आप के साथ चैट कर के अच्छा लगा। मैं आप से सहमत हूँ।

मैं: हाँ तैयारी तो वैसी रखनी चाहिए। पर उस का इंतजार तो नहीं किया जा सकता।  इसलिए विश्व में लगातार माहौल बनाना पड़ेगा और अभी तो संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद के मामले को ऐसे उठाना होगा कि कश्मीर का मामला उठे ही नहीं, और पाकिस्तान उठाने की कोशिश करे तो उस का मुहँ बंद कर दिया जाए।
धन्यवाद!

??????: बहुत धन्यवाद!  ओ. के. सर!

मैं:दिवस शुभ हो!

??????:आप का भी दिवस शुभ हो मकर संक्रांति की बहुत बहुत शुभकामनाएँ।

17 टिप्‍पणियां:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

आप लोगोँ की बातचीत बहुत सही रही

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

आज पाकिस्तान जरा घुसने की हिमाकत कर डाले तो काम बहुत आसान हो जाए।

पाकिस्तानी धरती से तैयारी करके भारतीय प्रतिष्ठानों पर जबरदस्त हमला क्या कुछ और है? इसे भारत में घुसना नहीं मानते तो क्या मानेंगे?

दर‍असल हमारे अन्दर वह हिम्मत और अत्मविश्वास नहीं है कि हम इस बदमाश से उलझकर सबक सिखा सकें। इसीलिए हम ‘शान्तिप्रेमी’ होने का ढोंग कर रहे हैं जो कायरता छिपाने के प्रयास के अतिरिक्त कुछ नहीं है।

Arvind Mishra ने कहा…

अच्छी चैट -लेकिन मैं फिर कहूंगा टिट फॉर टैट !

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

लाजवाब आईडिया जी.

रामराम.

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

परिपक़्वता इसी को कहते हैं। अन्धे युद्धोन्माद की नहीं संयत सुविचारित प्रतिक्रिया की आवश्यकता है।

संजय बेंगाणी ने कहा…

जब तक योग्य नेता न हो, युद्ध नहीं करना चाहिए. सेना सक्षम है, मगर अंत में नेता को काम करना है, हमारे नेता विश्वसनीय नहीं है. देश को मरवा देंगे.

विवेक सिंह ने कहा…

अच्छी चर्चा रही !

आपने इसे प्रकाशित करके बहुत अच्छा किया !

आभार !

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सही रही आपलोगों की बातचीत....अच्‍छा किया हमलोगों के सामने प्रस्‍तुत करके।

Unknown ने कहा…

bahut shai sir....aapki ek ek baat sach hai....

mamta ने कहा…

अच्छी लगी आप की ये चैट और इसे यहाँ ब्लॉग पर पोस्ट करने के लिए शुक्रिया ।

राज भाटिय़ा ने कहा…

दिनेशराय जी बहुत अच्छी रही आप की यह चेटिंग, ओर होना भी यही चाहिये, चाण्क्या नीति भी यही कहती है, क्योकि अब इस बिमारी को जड से खत्म करना होगा, ओर हमारी यही नीति अब पाकिस्तान नही चाहता, ओर बार बार उक्सा रह है लडाई के लिये ता कि फ़िर से ध्यान दुसरी ओर बंटे, लेकिन अब हमारे नेताओ को भी समझ दार होना चाहिये यह नही कि सरकार बदलते ही नीतिया भी बदल जाये.
जानब हम सहमत है आप के एक एक शवद से.
धन्यवाद

Unknown ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
सागर नाहर ने कहा…

अच्छी बातचीत रही, पर मैं इस बात को जल्दी आप को साबित कर बताऊंगा कि युद्ध के बाद कई देश शान्त, चुपचाप बैठ गये हैं और फालतू पचड़ों में पड़ने के बजाय अपने देश की उन्नति में लगे हैं। उपर दी गई दो टिप्पणियों से मैं सहमत हूँ एक तो त्रिपाठीजी की बात कि हमारे अन्दर आत्मविश्वास नहीं है सो हम शान्ति प्रेमी होने का ढोंग करते हैं और दूसरी बात संजय बैंगाणीजी की.. उनकी पूरी टिप्पणी से सहमत।

विष्णु बैरागी ने कहा…

भावनाएं आवश्‍यक है किन्‍तु केवल भावनाओं के दम पर सब कुछ नहीं किया जा सकता। भावनाओं पर ही नहीं, बुध्दि पर भी विवेक का नियन्‍त्रण आवश्‍यक है। ऐसे मामलों में केवल सरकार अथवा/और सत्‍तारूढ दल की मनमर्जी नहीं चलती। सरकार जो कुछ भी कर रही है, उस पर समस्‍त दलों और उनके नेताओं को विश्‍वास में लेकर ही कर रही होगी। ऐसा नहीं होता तो अब तक तो देश में उथल-पुथल मच जाती।
सम्‍वाद प्रस्‍तुत कर आपने बहुत ही अच्‍छा किया। इससे वे तमाम लोग सोचेंगे जो केवल भावनाओं के आधार पर बात कर रहे हैं।
आप केवल सफल वकील नहीं है, आप 'एक सफल विवेकवान वकील' हैं।

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

पहली गोली जो चलायेगा, वह आक्रमणकारी होगा। यह कवेंशनल वार का नियम है।
पर हमें प्रॉक्सी वार का उसी प्रकार जवाब देना चाहिये।

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

बहुत सार्थक बार्तालाप पढने मिला

Anurag Harsh ने कहा…

India or pakistan ke bare me aapke vichar aapke anubhav ko darsha rahe hai. Ham Pak par kabhi bhi hamla to kar sakte hai lekin pahle kutniti se use duniya me AATANKWADI rastra ghoshit karna bhi jaruri hai. taaki kal koi ye nahi kahe ki macchar ko mara kyo hatha se udaa dete. ham kah sakenge ki bar bar khun pee raha tha is liye marna pada. Realy Thanks for your live conversetion.