@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: विश्वास पर हमेशा कायम रहने का लाभ

रविवार, 21 दिसंबर 2008

विश्वास पर हमेशा कायम रहने का लाभ

राजस्थान में जब कृषि भूमि की सीलिंग लागू हुई तो अनेक जमींदारों की जमीनें सीलिंग में अधिगृहीत हो गईं। लेकिन अधिगृहीत भूमि का आवंटन अन्य व्यक्ति को होने के तक पूर्व जमींदार ही उस पर खेती करते रहे। जमींदारों के परिवारों में भी पैतृक संपत्ति का विभाजन न हो पाने के कारण स्थिति यह आ गई कि अनेक लोगों के पास बहुत कम कृषि भूमि रह गई। एक ऐसे ही परिवार का एक व्यक्ति सरकार में पटवारी था और अपने परिवार की सीलिंग में गई भूमि पर खेती कर रहा था।

सरकार ने उस भूमि को एक मेहतर को आवंटित कर दिया। उस पटवारी ने मुकदमा कर दिया कि उस भूमि पर वह खुद अनेक वर्षो से खेती कर रहा है और इसे दूसरे को आवंटित नहीं किया जा सकता। वह मेहतर मुकदमे का नोटिस ले कर मेरे पास आ गया और मैं ने उस की पैरवी की।

मुकदमे की हर पेशी पर वह पटवारी मुझ से मिलता और मुझे पटाने की कोशिश करता कि किसी भी तरह मैं कुछ रियायत बरतूँ और वह मुकदमा जीत जाए। वह जाति से ब्राह्मण था और बार बार मुझे दुहाई देता था कि एक ब्राह्मण की भूमि एक हरिजन के पास चली जाएगी। मैं उसे हर बार समझा देता कि मैं अपने मुवक्किल की जम कर पैरवी करूंगा। वह भी अपने वकील को कह दे कि कोई कसर न रखें। मैं ने उसे यह भी कहा कि मैं उसे यह मुकदमा जीतने नहीं दूंगा। बहुत कोशिश करने पर भी जब वह सफल नहीं हुआ तो उस ने कहना बंद कर दिया। लेकिन हर पेशी पर आता जरूर और राम-राम जरूर करता। 

मुकदमा हमने जीतना था, हम जीत गए। भूमि हरिजन को मिल गई। लेकिन उस के कोई छह माह बाद वह पटवारी मेरे पास आया और बोला। आप ने मुझे वह मुकदमा तो हरवा दिया, मेरी जमीन भी चली गई। लेकिन यदि मेरा कोई और मामला अदालत में चले तो क्या आप मेरा मुकदमा लड़ लेंगे। मैं ने उसे कहा कि क्यों नहीं लड़ लूंगा। पर मैं कोई शर्तिया हारने वाला मुकदमा नहीं लड़ता। वह चला गया।

बाद में उस ने मुझे अपना तो कोई मुकदमा नहीं दिया, लेकिन जब भी कोई उस से अपने मुकदमें में सलाह मांगता कि कौन सा वकील किया जाए? तो हमेशा मेरा नाम सब से पहले उस की जुबान पर होता। उस व्यक्ति के कारण मेरे पास बहुत से मुवक्किल आए।

13 टिप्‍पणियां:

Varun Kumar Jaiswal ने कहा…

सच्चाई एक बार बुरी लग सकती है , किंतु बुराई और बदनीयती तो हितैषियों की नजर में भी विश्वास खो देती है |
अच्छा लेख | धन्यवाद |

Gyan Darpan ने कहा…

खरी बात एक बार बुरी जरुर लगती लेकिन खरी कहने वाले और सच्चे आदमी की कदर दुश्मन भी करता है !

Dr Prabhat Tandon ने कहा…

सही सलाह शुरु मे भले ही कडवी लगे लेकिन अंत उसका हमेशा सुखदायी रहता है । दूसरी विशेष बात कि किसी भी प्रोफ़ेशन मे धर्म और सम्प्रदाय को बीच मे नही लाना चाहिये और यहाँ मै आपके दृष्टिकोण से पूर्ण्तया सहमत हूँ ।

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

वाह, नमक का दारोगा याद आ गयी प्रेमचन्द जी की।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

सच्चाई से चलने मे प्रारम्भिक कठिनाईयां तो आती हैं पर अन्तत: उसका फ़ल बहुत मीठा होता है !

रामराम !

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत खुब, सच कडवा तो होता है लेकिन दम दार होता है. पटवारी साहब जानते थे इस बात को इस लिये अब आप की इज्जत करते है.
धन्यवाद

P.N. Subramanian ने कहा…

बड़ा ही सुखद अनुभव रहा. आभार.

गौतम राजऋषि ने कहा…

कड़वे सच का स्वाद अंततः तो मीठा होता ही है

संगीता पुरी ने कहा…

अंत भला तो सब भला...... सच्‍चे रास्‍ते पर चलने से यही होता है।

Smart Indian ने कहा…

इस प्रेरक प्रसंग के लिए धन्यवाद! उस पटवारी का अद्रोह अनुकरणीय है.

अनूप शुक्ल ने कहा…

अच्छा लगा इसे पढ़ना!

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

किसी भी क्षेत्र मे विश्वसनीयता ही तो गारंटी है सफल होने की . ऐसा सफल लोग बताते है

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

आप ने सच्ची बात बतलाई -
साँच को आँच क्या ?