@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: चलो कुछ काम किया जाए

सोमवार, 1 दिसंबर 2008

चलो कुछ काम किया जाए

वक्त जैसा है, सब को पता है 
उस के लिए क्या कहा जाए।
न होगा कुछ सिर्फ सोचने से 
चलो कुछ काम किया जाए।।

इस वक्त में पढ़िए पुरुषोत्तम 'यकीन' की एक ग़ज़ल ...



'ग़ज़ल'
क्या हुए आज वो अहसासात यारो     

  • पुरुषोत्तम ‘यक़ीन’

क्या कहें आप से दिल की बात यारो
अपने ही करते हैं अक्सर घात यारो

पस्तहिम्मत न हो कर बैठो अभी से
और भी सख़्त है आगे रात यारो

साथ बरसातियाँ भी ले लो, ख़बर है
हो रही है वहाँ तो बरसात यारो

चोट मुझ को लगे, होता था तुम्हें दुख
क्या हुए आज वो अहसासात यारो

चाल है हर ‘यक़ीन’ उन की शातिराना
फिर हमीं पर न हो जाये मात यारो


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11 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

चोट मुझ को लगे, होता था तुम्हें दुख
क्या हुए आज वो अहसासात यारो
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल....वाह..पुरुषोतम जी वाह...
नीरज

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

शानदार रचना !

रामराम !

महेंद्र मिश्र.... ने कहा…

चाल है हर ‘यक़ीन’ उन की शातिराना
फिर हमीं पर न हो जाये मात यारो...
बेहद शानदार ग़ज़ल....वाह..

डॉ .अनुराग ने कहा…

जल्द ही हमें ओर देश को दिल पर पत्थर रख उन घटनाओ से सबक सीखकर अपनी भूलो को सुधारना होगा.....

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

चोट मुझ को लगे, होता था तुम्हें दुख
क्या हुए आज वो अहसासात यारो

वो अहसास तो जिंदा होते तो ये स्थिति ही क्यों आती सर!

Himanshu Pandey ने कहा…

"साथ बरसातियाँ भी ले लो, ख़बर है
हो रही है वहाँ तो बरसात यारो"

इन पंक्तियों की मारकता अद्भुत है. अप्रत्यक्ष भाव विधान ने इन पंक्तियों का प्रभाव बढ़ा दिया है. पुरुषोत्तम जी का धन्यवाद .

विष्णु बैरागी ने कहा…

अच्‍छी गजल है ।

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

खूबसूरत रचना।

Smart Indian ने कहा…

सार्थक रचना!

विधुल्लता ने कहा…

चोट मुझ को लगे, होता था तुम्हें दुख
क्या हुए आज वो अहसासात यारो
ek sukh ki tarah hai ye gajal bahaaron ,badhai

Abhishek Ojha ने कहा…

अच्छी रचना है... वैसे आजकल कुछ भी पढने का मन नहीं कर रहा !