@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: शहर न हुए, हो गए ब्लेक होल।

सोमवार, 3 मार्च 2008

शहर न हुए, हो गए ब्लेक होल।

ब्लेक होल
  • दिनेशराय द्विवेदी
शहर, शहर न हुए,
हो गए ब्लेक होल,
जो भी आता है नजदीक
खीच लिया जाता है उस के अन्दर।
हाँ रोशनी की किरन तक
उस के अन्दर।
नहीं निकलता कोई भी उस से बाहर
कभी नहीं।

क्या है,इस ब्लेक होल में?
कोई नहीं जानता है, या
जानता है कोई कोई।
अभी-अभी किसी बड़े विज्ञानी ने बताया
चन्द रोशनी की किरणें निकल पाती हैं
ब्लेक होल के बाहर
या फिर निकल पड़ता है सब कुछ ही बाहर
जब फट पड़ता है
अपने ही दबाव से ब्लेक होल।
फिर से बनते हैं सितारे, ग्रह, उपग्रह, क्षुद्रग्रह, पूंछ वाले तारे और उल्काएं भी।
न जाने और क्या क्या भी।

तो आओ तलाश करें उन किरनों को,
जो निकल आई हैं उस ब्लेकहोल के बाहर
और शहर, और शहरों के बाहर
पूछें उन से क्या है शहर के भीतर
कैसा लग रहा है,
शहर के बाहर?
और कितना है दबाव अन्दर
कि कब टूट रहा है ब्लेक होल?
कि कब बनेंगे?
नए सितारे, नए ग्रह, नए उपग्रह,
नए क्षुद्रग्रह, पूंछ वाले नए तारे
और नई उल्काएं।
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6 टिप्‍पणियां:

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

ओह! बहुत ओरिजिनल भाव। मैने कभी सोचा नहीं शहर को ब्लैक होल या ब्लैक होल को शहर के दृष्टिकोण से।

Udan Tashtari ने कहा…

इनोवेटिव ख्याल..बेहतरीन.

बेनामी ने कहा…

Ur words r very meaningful. It shows reality of pressure of modern and fast life on residents of modern and advanced cities.

राज भाटिय़ा ने कहा…

तो आओ तलाश करें उन किरनों को,
जो निकल आई हैं उस ब्लेकहोल के बाहर
वाह दिनेश जी आप ने शव्दॊ को, मन की भावना को किस रुप मे कह दिया सच आप की कविता मन को छु गई
धन्यवाद

Alpana Verma ने कहा…

Hindyugm par aap ki tippani dekhi aur wahan aap kikavita padhee aur blog par dastak dene aa gayee.

aap ki black hole kavita mein nayapan hai aur mujhe acchee lagi.

dhnywaad.
alpana

अजित वडनेरकर ने कहा…

बहुत बढ़िया भाव। एकदम ही अनोखी सूझ। कविता में इस तरह वैज्ञानिक संदर्भ को सही परिप्रेक्ष्य में बहुत कम देखा है।
अच्छी कविता।